NCERT 10th HINDI क्षितिज अध्याय -02 / बालगोबिन भगत/कहानी का सार

                                                             


                कहानी का मुख्य सार
                                   
                 बाल गोबिन भगत 

  1. लेखक बचपन से ही बालगोबिन भगत को आदरणीय मानता है। लेखक जाति में ब्राह्मण थे जबकि बालगोबिन भगत तेली जाति से संबंध रखते थे, जिसे समाज में सम्मान से नहीं देखा जाता था। इसके बावजूद बालगोबिन भगत सभी की आस्था का केंद्र थे जिसका कारण था-उनका व्यक्तित्व, उनका आचरण और उनके कर्म।

 2.  बालगोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी वास्तविक साधु थे। साधु की पहचान पहनावे से नहीं होती अपितु उसका व्यवहार उसे साधु बनाता है। बालगोबिन भगत कबीर के आदर्शों पर चलने वाले सादगीपूर्ण व्यक्ति थे। वेश-भूषा के नाम पर कमर पर एक लंगोटी मात्र और सिर में कबीरपंथी कनपटी टोपी। सर्दियां आती तो एक काला कम्बल उपर से ओढ़ लेते। मस्तक पर रामानंदी चन्दन का टीका और गले में तुलसी की माला।

3.  उनका साफ़-सुथरा मकान था। थोड़ी खेती-बाड़ी भी करते थे। सच्चे भक्त होने के कारण जीवन में जो भी कुछ था, सभी को इश्वर की देन मानते। जो खेत में पैदा होता सब कबीर मठ में दे आते, जो कुछ प्रसाद में मिलता उसी से गुजर बसर करते। कबीर को अपना साहब मानते थे, इसलिए बाह्य आडम्बरों से हमेशा दूर रहते। सीधा सच्चा  व्यवहार था उनका, ना कभी झूठ बोलते थे, न कभी किसी से झगड़ा करते थे। कभी किसी की चीज़ को बिना पूछे हाथ भी नहीं लगाते। लोग  ये देखकर हैरान होते कि वे किसी दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नही जाते थे।

4.  हाथ में  बजाते, कबीर के गीतों को स्वरबद्ध करते। जब वे मधुर गायन करते तब नज़ारा देखने वाला होता था। जैसे ही उनके गाने की आवाज लोगों के कानों में पड़ती, खेलते हुए बच्चे झूम उठते, मेड़ पर खड़ी औरतों के होंठ कांपने लगते, वे गुनगुनाने लगती, हलवाहों के पैर तल से उठने लगते, रोपनी करने वालों की उँगलियाँ अजीब क्रम से चलने लगती। यह जादू था, बालगोबिन भगत के संगीत का

5. कार्तिक में आरम्भ की प्रभातियां फागुन तक चला करती थी। in दिनों लोगों के जगने से पहले ही सुबह जल्दी उठकर गाँव से दो मील दूर नदी -स्नान के लिए जाते। कंपकंपा देने वाली ठंड में भी उनके मस्तक से श्रम बिंदु चमक पड़ते थे। 

6.  बालगोबिन भगत की भक्ति एवं संगीत साधना उस दिन चरम उत्कर्ष पर देखने को मिली।  जब उनका इकलौता बेटा स्वर्ग सिधार गया। विलाप करने के बजाय उन्होंने सभी को उत्सव मनाने को कहा। उनका मानना था कि आत्मा परमात्मा से जा मिली है। यह शौक का विषय नहीं अपितु आनन्द का समय है। 

7.  सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए अपनी पुत्रवधू से पुत्र का दाह संस्कार करवाया और अग्नि दिलवाई। विधवा विवाह को ठीक मानते हुए पुत्रवधू के भाई को बुलाकर उसकी दूसरी शादी करने के लिए कहा। 

8. वह हर वर्ष गंगा स्नान को जाते। घर से खा-पीकर चलते और घर आकर ही खाते-पीते। रास्ते में कुछ ग्रहण नहीं करते। एक सुबह उनके गीत सुनाई नहीं दिए। पता चला कि इस नश्वर शरीर को त्यागकर चले गये




These notes are prepared by Ms Sushil Deswal PGT Hindi Haryana

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