NCERT 10th HINDI क्षितिज अध्याय -01 / नेता जी का चश्मा//कहानी का सार

                                                    
                                                       
                                                                   नेता जी का चश्मा 

                                                       (कहानी का सरल एवं मुख्य सार )

  • हालदार साहब को हर पन्द्रहवें दिन कम्पनी के काम से कस्वे से गुजरना पड़ता था |
  • कस्बा बड़ा नहीं था | कुछ एक पक्के मकान और बाज़ार जैसा एक बाज़ार था | कस्बे में एक लड़कों का स्कूल, एक लड़कियों का स्कूल, एक सीमेंट का छोटा- सा कारखाना, दो ओपन एयर सिनेमा घर और एक नगरपालिका भी थी |
  • नगरपालिका का कार्य - सड़कें पक्की करवा दी, कभी कुछ पेशाबघर बनवा दिए, कभी कबूतरों की छतरी बनवा दी तो कभी कवि सम्मेलन करवा दिया |
  • नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार शहर के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी | उसी प्रतिमा की ये कहानी है -नेता जी का चश्मा |
  • एक अनुमान से समय के आभाव अथवा बजट की कमी के कारण नेता जी की प्रतिमा का कार्य किसी स्थानीय कलाकार को दिया गया होगा | अंत में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर मान लीजिये मोतीलाल जी को ये कम सौंपा होगा जो महीने-भर में मूर्ति बना कर 'पटक देने' का विश्वास दिला रहे थे |
  • मूर्ति संगमरमर की थी | टोपी की नोक से कोट के दुसरे बटन तक कोई दो फुट ऊँची, जिसे कहते हैं -"'
  • अत्यंत ही सुंदर, कमसिन और मासूम नेता जी फौजी वर्दी में आकर्षक लग रहे थे | मूर्ति को देखते हुए 'दिल्ली चलो', तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा नारे याद आने लगते थे |
  • मूर्ति में बीएस एक ही कमी थी, चश्मे की | चश्मा था तो लेकिन संगमरमर का नहीं, एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था |
  • पहली बार हवलदार साहब कस्बे को गुज़रे और चौराहे पर पान खाने को रुके तो मूर्ति को देखकर चेहरे पर मुस्कान आ गयी | यह आईडिया भी ठीक है | मूर्ति संगमरमर की और चश्मा रियल, मन ही मन इस प्रयास को सराहनीय कहते हुए चले गए |
  • दूसरी बार उधर से गुजरने पर देखा अब तार के फ्रेम वाला गोल चश्मा है | पहले मोटे फ्रेम वाला चौकोर चश्मा था | वाह भई ! मूर्ति कपड़े नहीं बदल सकती, चश्मा बदल सकती है |
  • तीसरी बार फिर नया चश्मा | हालदार साहब को अब आदत हो गई | पान-खाने के लिए रुकना और मूर्ति को हर बार नए चश्मे के साथ देखना | अब की बार उन्होंने पान वाले से पूछ ही लिया, "क्यों भाई, ये तुम्हारे नेता जी का चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है ?"
  • पान वाले ने खुद के मुंह में पान ठूंसा हुआ था | वह एक काला मोटा और खुशमिजाज़ आदमी था | हालदार साहब का प्रश्न सुनकर आँखों ही आँखों में हंसा | उसकी तोंद थिरकी | पीछे घूमकर दुकान के नीचे पान थूका और लाल- काली बतीसी दिखाकर बोला, "कैप्टन चश्मे वाला करता है|"
  • हालदार साहब को समझ नहीं आया | पानवाला समझता है की कैप्टन चश्मा बेचने का काम करता है | उसे नेता जी की बिना चश्मे की मूर्ति आहत करती है मानो उन्हें बिना चश्मे के असुविधा हो रही है | कोई ग्राहक आता है उस फ्रेम के चश्मे की मांग करता है तो कैप्टन नेता जी से माफ़ी मांगते हुए फ्रेम उतारकर ग्राहक को दे देता है और नया पहना देता है | ऐसे उसके चश्मे की बिक्री भी हो जाती है |
  • हालदार साहब पूछते हैं कि नेता जी का असली चश्मा कहाँ गया, तब पानवाला हँसकर बताता है कि मास्टर लगाना भूल गया |
  • हालदार साहब चश्मे वाले की देशभक्ति के सामने नतमस्तक होते हैं और पानवाले को पूछते हैं,"क्या कैप्टन चश्मे वाला नेताजी का साथी है ? या आज़ादहिन्द फ़ौज का भूतपूर्व सिपाही है ?"
  • पान वाला खाते-खाते बताता है कि वो लंगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में | उसे पागल बताता है और उसका मजाक उडाता है | हालदार साहब को एक ऐसे देशभक्त का मज़ाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगता |
  • हालदार चश्मे वाले को देखकर हैरान हो जाते हैं | एक बेहद बूढ़ा मरियल सा  लंगड़ा आदमी सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूचकी और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टंगे बहुत से चश्मे लिए अभी-अभी एक गली को निकला था | अब एक बंद दुकान के सहारे अपना बाँस टिका रहा था | इस बेचारे की दुकान भी नहीं, फेरी लगाता है |
  • दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में वहाँ से गुजरते रहे और नेता जी के बदलते चश्मों को देखते रहे |
  • अचानक एक दिन ऐसा हुआ कि मूर्ति पर कैसा भी चश्मा नहीं था | चौराहे की अधिकांश दुकानें बंद थी | जब पानवाले से पूछा कि तुम्हारे नेता जी का चश्मा नहीं है | आज पान वाले ने अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछते हुए जवाब दिया कि "साहब ! कैप्टन मर गया |"
  • हालदार साहब उदास होकर जीप में जा बैठे और जाते-जाते सोचते रहे कि क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-ज़िन्दगी सब कुछ होम देने वालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढती है |
  • अगली बार ये सोचकर कि मूर्ति की ओर नहीं देखेंगे चौराहे से गुजरे | आदतन नज़रें उठी और चीखे,'रोको !'जीप स्पीड से रुकी |' हालदार साहब नेता जी की मूर्ति के सामने जा कर सावधान खड़े हो गए | यह देखकर अत्यंत भावुक हो गए कि नेता जी की मूर्ति बिना चश्मे के नहीं थी अपितु चश्मा लगा था | मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था, जैसा बच्चे बना लेते हैं | भावी पीढ़ी की देशभक्ति की भावना को देखकर हालदार साहब भावुक हो उठे |  




This content is prepared by Ms Sushila Deswal PGT Hindi Panchkula Haryana

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